$ग़ज़ल
बहरे मुतक़ारिब मुसमन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़उल
122/122/122/12
रुलाकर हमें वो हँसाते रहे
मगर कुछ नया वो सिखाते रहे//1
लम्हे ख़ास इस ज़िंदगी में मिले
हमें आइना जो दिखाते रहे//2
नज़र की हमारी तरफ़ और वो
किसी और पर दिल लुटाते रहे//3
मिटाये अँधेरे घने और हम
लिए हौंसला मुस्क़राते रहे//4
हँसी और ग़म सोचकर अब मिले
बधिर को ग़ज़ल हम सुनाते रहे//5
मिला यश उन्हीं को जहां में सदा
हुआ शौक़ जो गुनगुनाते रहे//6
तिरा शौक़ ‘प्रीतम’ बड़ा हो गया
लगी आग तुम वो बुझाते रहे//7
#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल