$ग़ज़ल
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122/122/122/122
किसी के भरोसे उछलता नहीं दिल
जुबां की वफ़ा से टहलता नहीं दिल
मुहब्बत तुम्ही से हमें हो गई है
सिला क्या मिलेगा समझता नहीं दिल//2
हमारी मुहब्बत सज़ा बन न जाए
मग़र ख़ौफ़ से भी फिसलता नहीं दिल//3
इशारों इशारों में दिल दे दिया है
बिना आपके अब ये लगता नहीं दिल//4
किसी रोज तुमसे मुलाक़ात होगी
इसी दीद से पर निकलता नहीं दिल//5
इरादा किया वो सलामत रहेगा
कभी हार से भी बदलता नहीं दिल//6
उजाले मुहब्बत के ग़म तम मिटा दें
भुलाकर यही बात चलता नहीं दिल//7
#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल