ग़ज़ल
दिल तोड़ कर दिल लगाना बुरा है!
नज़र से नज़र फिर मिलाना बुरा है!!
वक़्त नाज़ुक है चलना सम्भलकर,
फासले दरमियां हों, जमाना बुरा है!
करो इश्क़ यूं के अंजाम तक पंहुचे,
दिल में रह कर दिल दुखाना बुरा है!
दहलीज़ पे घर की दस्तक रख दो,
खामोशी से घर में आ जाना बुरा है!
रिश्ता रखना सदा दर्दमन्दों से क़ायम,
रिश्ते जुबां से महज़ निभाना बुरा है!
मुहब्बत दिल में किसी के जगा कर,
नज़र से दूर फिर हो जाना बुरा है!
टूट जाते हैं अक्सर ऐसे भी लोग,
ख्वाबों का जैसे बिखर जाना बुरा है!!
-मोहम्मद मुमताज़ हसन
रिकाबगंज, टिकारी, गया
बिहार – 824236