ग़ज़ल
इस तरह हमसे करो पर्दा अगर लगता है
जिस तरह मौत से अपनी तुम्हें डर लगता है
ख़ैर कितनी भी करूँ पर उन्हें शर लगता है
शर मगर उनका हमे हुस्न-ए-नज़र लगता है
अपने माथे से हटाओ जो शिकन है वरना
धुँदला धुँदला सा जो लिक्खा है ख़बर लगता है
हमने सीखा नही दुनिया से ख़ुशामद करना
चापलूसी भी करो तुम तो हुनर लगता है
संग-ए-मरमर की तरह खुद को नुमाया मत कर
गर तुझे ताज-महल मौत का घर लगता है
कोई बचपन मे ‘फुज़ैल’ बात जो घर कर जाये
उम्र भर यानी उसी बात से डर लगता है
©फुज़ैल सरधनवी