ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
ख़ास समझा था जिसे वो ही बेगाना हो गया।
क्या कहे अब, बेवफ़ाई का ज़माना हो गया।
जान मैं उसकी सदा मुझसे यही कहती रही,
घूमती गैरों के सँग अब मैं पुराना हो गया।
थे गुज़ारे रात दिन जिसने हमारे साथ में,
अब उसे मुश्किल यहाँ इक पल बिताना हो गया।
देखकर मुझको नज़र वो फेर लेती बेवफ़ा,
ज़िंदगी में आज यारों क्या फ़साना हो गया।
घूमता गैरों के सँग ना देख पाया मैं उसे,
आज कुछ मजबूरियों में दिल जलाना हो गया।
बैठ गम की छाहँ में फिर नफ़रतें बढ़ने लगीं,
इस तरह से आज उसको भी भुलाना हो गया।
अभिनव मिश्र अदम्य