ग़ज़ल
ग़ज़ल
2122. 2122. 2122. 2122
जीने को साँसे भी देगा पैदा यूँ जिसने किया है
आगे उसके सिर झुका जीवन तुझे उसने दिया है
वक्त की आवाज़ है ये बदलना तो काम उसका
जिन्दा है इन्सान वो यूँ बक्त को जिसने जिया है
बक्त को पहचान कर है वक्त के जो साथ चलता
सुनता है जो वक्त की नाम उसी का सबने लिया है
वक्त की दहलीज पर तू वक्त की आवाज सुन ले
वोही जीवन में सुखी है जाम उसका जो पिया है
दर्द में भी सुख का अनुभव जो करे दुनिया में यारा
मानों चुप रहने को उसने होठों को अपने सिया है
आदमीयत भूल कर जो मारे यू्ँ ही आदमीयत
साथ उसके वक्त ने बदला सदा ही तो लिया है
वक्त की आवाज सुन अहसान उसका मान ले तू
जिंदगी को उसने ही तो नाम यूँ तेरे किया है
सुरेश भारद्वाज निराश
धर्मशाला हिप्र