ग़ज़ल
1222. 1222. 1222. 1222
ग़ज़ल
बिताये साथ हमने दिन वो प्यारे याद आते हैं
जो मिलकर हमने थे कैसे सँवारे याद आते है
वो घड़ियाँ याद आती हैं मिला करते थे हम दोनों
वो मौसम याद आता है नज़ारे याद आते हैं
तेरा गर्दन में बाहें डाल कर मुझको यों कुछ कहना
रहूँगी पास मैं तेरे इशारे याद आते हैं
नदी के घाट पर बैठा निहारा करता मैं तुमको
वो कश्ती याद आती है शिकारे याद आते हैं
मेरे कांधे पे सिर रख के बहाना आँसू वो तेरा
सिमटना मेरी बाहों में सहारे याद आते हैं
धरा पर रेत की वो सीपियों से नाम यूँ लिखना
वो लहरें याद आती हैं किनारे याद आते हैं
नज़र तेरी से उतरे जब वो दिन हम भूलें तो कैसे
जो धड़के साथ में वो दिल हमारे याद आते है
सुरेश भारद्वाज निराश
धर्मशाला हिप्र