ग़ज़ल
शाइर से शाइर जलने लगे हैं ।
खूँ के वो भूँके दिखने लगे हैं ।
यारों हमको भी जलना पड़ा है।
उनकी खातिर जो लिखने लगे हैं ।
रुकते रुकते मेरा दिल है धड़का
गलियों में अक्सर रुकने लगे हैं ।
हम बचते भी बचते कैसे’ बचते।
ख्यालों के बाहर मिलने लगे हैं।
उनसे कह के तो आये न आना
पर राहें उनकी चलने लगे हैं ।
दर्द-ए-तुह्फ़ा हाँ “तेजस” क़ुबूले ।
इश्क-ए-आयत अब पढ़ने लगे हैं ।
©प्रणव मिश्र’तेजस’