ग़ज़ल
दम नहीं बात में , मुहब़्ब़त में ।
आज पाखण्ड है अक़ीदत में ।।
आँख में लालिमा जो छाई है,
रात बीती है तेरी फ़ुर्क़त में ।।
जुल्फ़ का पेंच आज ढीला है,
वक़्त गुज़रा हो जैसे फुर्सत में ।।
आसरा छाँव का नहीं दिखता,
अब बहुत धूप है हुक़ूमत में ।।
मौत अंतिम इलाज़ है लेकिन,
वो भी लिक्खी नहीं है किस्मत में ।।
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी