ग़ज़ल
1• इश्क़ वफ़ा जफ़ा हुस्न हया भी कहती है ,
औ ग़ज़ल जब रोती है तो माँ भी कहती है ।
2• क़ुरआन बाइबिल गीता क्यों पढू मैं भला,
जब वही बातें सभी मेरीं माँ भी कहती है |
3•औकात से बाहर की फरमाइशों पे डाटती है ,
ज़िद करता हूँ तो रोकर के हाँ भी कहती है ।
4• उजाले मेरीं हयात में फकत माँ ने ही किये,
ये इबादत खाने की एक समां भी कहती है ।
5• फ़क़त माँ के ही कदमों है ज़न्नत सुमित ,
ये मैं भी कहता हूँ ये दुनिया भी कहती है ।
सुमित सिंह
गोरखपुर