#ग़ज़ल-39
दिल में तसवीर तेरी है आँखों से मना क्यों करूँ
कोई हसरत जगी है आहों में फ़ना क्यों करूँ/1
बढ़ते जाते क़दम हैं कैसे रोकूँ रुकें ही नहीं
चलना ही ज़िंदगी है मैं खुद रूकूँ तना क्यों करूँ/2
तुमने देखा मुझे यूँ जैसे प्यासी अमर हो यहाँ
बनके बादल खुदी मैं राहें सूखी चुना क्यों करूँ/3
यूँ ही मिलता नहीं है सजके ये काफ़िला जी यहाँ
इसको जीता अगर है तन्हाई मैं गिना क्यों करूँ/4
देखो बनके खड़ी हैं रातें दुल्हन हसीं-सी जुदा
दीवाना हूँ वफ़ा का सुबहों की याचना क्यों करूँ/5
तेरी रुह ने मुझे प्रीतम अपना जो कहा प्यार से
फिर ये तक़रार की मैं भूले से पालना क्यों करूँ/6
-आर.एस.”प्रीतम”