ग़ज़ल
आज अपने दिल की बात बता रही हूँ,
शब्दों में नहीं, आंखों से समझा रही हूँ।
नैनों की भाषा समझ ले तू सनम,
प्यार का गीत गुनगुना रही हूँ।
तेरी आँखों को बनाकर दर्पण,
अक्स मैं अपना उसमें पा रही हूँ।
किताबों में नहीं है अल्फाज दिल के,
उन्हें इशारों में ही जता रही हूँ।
दिल के जज्वात समझ ले दिल से,
दिल को पढ़ने का हुनर सिखा रही हूँ।
अमावस की रात है माना मैंने,
संग तेरे चाँदनी रात का सुकूँ पा रही हूँ।
जन्म जन्म का रिश्ता है प्रदीपस्वाति का,
इस रिश्ते पर नजर का टीका लगा रही हूँ।।
By: Dr Swati Gupta