ग़ज़ल-1 (बाज़ दिल याद से उन की न ज़रा-भर आया)
बाज़ दिल याद से उन की न ज़रा-भर आया
वो न आए तो ख़्याल उन का बराबर आया
साक़ी-ए-दर्द भरा ही किया पैमाना-ए-चश्म
सो तिरी बात पे छलका जो ज़रा भर आया
आह! वो शिद्दत-ए-ग़म है कि मिरी आँखों से
बूँद दो बूँद नहीं, एक समुंदर आया
जिस से बचने के लिए बंद कीं आँखें हम ने
बंद आँखों पे भी आगे वही मंज़र आया
ये जो सहरा में फिरा करता है दीवाना सा
ख़ुद को दुनिया के झमेलों से छुड़ा कर आया
दिल को शिद्दत से तमन्ना थी तिरे कूचे की
सो बड़े शौक़ से उस को मैं वहाँ धर आया
©फ़रहत अली ख़ान