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10 Apr 2018 · 1 min read

ग़ज़ल- ज़ुल्म का देखिये सिलसिला हो गया

ग़ज़ल- ज़ुल्म का देखिये सिलसिला हो गया
●●●●●●●●●●●●●●●

क्या था’ मैं आजकल क्या से’ क्या हो गया
चोट ऐसी लगी बावरा हो गया
○○○
जिक्र यूँ प्यार का कर दिया आपने
ज़ख्म जो भर चुका था हरा हो गया
○○○
एक मुद्दत लगी तो मिले आपसे
इतनी’ जल्दी ये’ क्यूँ फासला हो गया
○○○
चेहरों पे वो’ जो नूँर था साथियों
सोचता हूँ कहाँ लापता हो गया
○○○
हाय अफ़सोस है संत के राज में
ज़ुल्म का देखिये सिलसिला हो गया
○○○
जिसको’ “आकाश” क़ाबिल बनाया वही
इतना’ आगे बढ़ा बेवफ़ा हो गया

– आकाश महेशपुरी

1 Like · 1469 Views
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