ग़ज़ल- ज़ाम पे ज़ाम पीता रहा आज़तक
ज़ाम पे ज़ाम पीता रहा आज़तक।
होश़ आए न जीता रहा आज़तक।।
वो निबाले दिखाता रहा आज़तक।
भूख मेरी बढ़ाता रहा आज तक।।
उसकी चाहत में ख़ुद को मिटा डाला है।
मुझको पागल समझता रहा आज़तक।।
एक पल की ख़ुशी उनको मिल जाये गर।
रंज-ओ-ग़म सारे सहता रहा आज़तक।।
प्यार बांटा सदा नफ़रतों को मिटा।
प्यार को ही तरसता रहा आज़तक।।
तिश्नंगी प्यार की है बढ़ी इस कदर।
अश्क़ आँखों के पीता रहा आज़तक।।
उसने ठुकराया मुझको सदा के लिए।
मैं मुकद्दर समझता रहा आज़तक।।7
वो न आये कभी, राह सदियों तकी।
बस समाचार आता रहा आज़तक।।
हर घड़ी मौत से बचके चलता रहा।
‘कल्प’ मर मर के जीता रहा आज़तक।।
✍?? अरविंद राजपूत ‘कल्प’?✍?
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
वज़्न:फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
(212 212 212 212 )