ग़ज़ल/ग़ज़ल के इशारे क्या लिक्खूँ
हाय मैं क्या लिक्खूँ तेरे शरारे क्या लिक्खूँ
आँसुओं में डूबो दिया अब बहारें क्या लिक्खूँ
दो पल ख़ुशी देकर फ़िर दे दी दुश्मन तन्हाई
हाय मैं बदनसीब बेसहारे नज़ारे क्या लिक्खूँ
तुझे अंदाज़ा नहीं तू रोज़ रोज़ क्या करती है
दिल फ़िर हुआ चकनाचूर किनारे क्या लिक्खूँ
कैसी है री तू ना मुहब्बत ना बेरुख़ी बर्दाश्त तुझे
पूरा जिस्म नोच लिया है मेरा हाय रे क्या लिक्खूँ
आ सुबूते तौर देख मेरा तू देख ख़ून ए ज़िगर करूँ
तुझे सुकूँ मिले मेरी जाँ इससे मैं हारे हारे क्या लिक्खूँ
चादर की सलवट लिक्खूँ मैं टूटा तकिया क्या लिक्खूँ
तेरी इतनी बेरुख़ी से गमज़दा सर मारे मारे क्या लिखूँ
अब भी तुझ में ज़रा मुहब्बत बाक़ी तो होगी चली आ
मोहब्बत हार जाएगी वरना मैं ग़ज़ल के इशारे क्या लिक्खूँ
~अजय “अग्यार