ग़ज़ल- क़ानून की सिफ़त है बची सिर्फ नाम की
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ग़ज़ल
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धज्जी उड़ी हुई है सभी इन्तज़ाम की
क़ानून की सिफ़त है बची सिर्फ नाम की//१
तुम थे हवा हवाई बचा के नज़र गए
मेरी तरफ़ से कब थी मनाही सलाम की।//२
दिल में जगा के टीस चले मुस्कुरा के तुम
अब दिल में धक लगी है तुम्हारे पयाम की//३
बौरा के जब बसन्ती हवा झूमती चले
कोयल सुनाए कूक तुम्हारे कलाम की//४
अब ज्ञान बाँटने का है ठेका उन्हें मिला
जो खा रहे हैं मुफ़्त में बिल्कुल हराम की/५
इक शाम जो थी गुज़री तुम्हारे दयार में
हर शाम याद आती है उस प्यारी शाम की//६
तेरा करम हुआ जो मुहब्बत की बज़्म में
हस्ती ही मिट गई है तेरे इस ग़ुलाम की।//७
— क़मर जौनपुरी