(( ग़ज़ल हो जाऊ ))
थोड़ा सा जो मैं तुझमे समा जाऊ
ख्यालो में तेरे संग साथ फेरे घूम आऊं
अब आँसू भी मयखाने से लगते है
तेरी याद में सारे मयखाने पी जाऊ
संग तेरे तो वीराने भी बहार से लगते है
छोड़ के दामन तेरा, अब मैं कहा जाऊ
न ढूंढे करे कोई, मुझे मेरे ज़िस्म में
मैं वो रूह हूँ, जो तेरे ज़िस्म में समा जाऊ
मोहब्बत कर के क्या पाया है किसी ने आजतक
तू दो बूंद अपने इश्क़ का दे तो, मैं ख़ुदा का नसीब हो जाऊ
क्या तरसेगा कोई मुझे किसी सांचे में
मैं वो स्याही हूँ, जो तेरी हर ग़ज़ल हो जाऊ