ग़ज़ल/हम ग़लत ना थे
दिल की लो सुन लो पुकार हम ग़लत ना थे
तुम भी हमकों लो पुकार हम ग़लत ना थे
हमनें गर्दिशें हालात में तुमकों सहारा किया
तुमनें गफ़लत में यूँ ही हमसे किनारा किया
मेहरबां रुख़ से पर्दा दो उतार हम ग़लत ना थे
कभी हम पछुआ हवा सा चलते थे
कभी जाड़ों की धूप सा निकला करते थे
वो हमकों लौटा दो बहार हम ग़लत ना थे
खड़े हैं आज भी हम उस मोड़ पर इंतज़ार में
हमनें क्या क्या ना किए जतन हर पहर इंतज़ार में
आज पल डसतें हैं वो सोगवार हम ग़लत ना थे
हम कैसे इन दर्द-ओ-ग़म में गुज़ारा करें
हर दर्द में ,हर ग़म में तुमकों पुकारा करें
हमकों थोड़ी सी ख़ुशी दे दो उधार हम ग़लत ना थे
आ जाओ लौटकर अब तुम किसी बहाने से
ना ख़त हैं ना तस्वीर तुम्हारी ,ज़ख्म हैं पुराने से
चाहें ज़िगर में नश्तर कर दो आरपार हम ग़लत ना थे
__अजय “अग्यार