ग़ज़ल/हमें नाआश्ना तुमने किया
जो तुम्हारे बस में था तुमने किया
जो कुछ हमारे बस में था हमने किया
तुमसे जुदा होने में कोई मर्ज़ी ना थी
तुमकों जुदा होना था जुदा तुमने किया
सारी वफ़ा का इस तरहा अदा तुमने किया
बेवजहा इल्ज़ामात देकर रुसवा तुमने किया
हम तो जी ही लेंगे फ़िर भी जैसे तैसे करके
मेरे ज़ख्मों को नासूर रफ़्ता रफ़्ता तुमने किया
गुलशन से महके हुए थे लम्हें तेरे ऐतबार में
मग़र खामखां सारें लम्हों को ख़ज़ा तुमने किया
अपने फैंसलों पे सर पकड़कर सनम रोना मत
इक मुहब्बत के फरियादी का भला तुमने किया
जब भी मन चाहा हर बात पे नखरा तुमने किया
पहले अपना कहा फ़िर ग़ैर हमें नाआश्ना तुमने किया
~अजय अग्यार