ग़ज़ल -सी
मेरे नज़्म की तरह, वो भी एक ग़ज़ल है,
उस गजल का हर लफ्ज़ मेरे कानो में गूंजा करता है,
वो मेरी प्रीत है, वो मेरी मीत है,
उसका मुझसे संगम होना, मेरे इश्क़ की जीत है !
वो बेसुध होकर मेरे मन को सजाया करती है,
यादो के धागो में मुझे पिरोया करती है,
उसके जज्बातों के रंग, मुझमे कई उमंग जगाया करते है,
मैं क्यूँ न कहूं कि…. वो मेरे रग -रग में समाया करती है,
वो एक गजल है, मस्ती से भरी,
जो मेरे दिल पे रौब खाया करती है !!
वो हरदम मुस्कुराया करती, वो गुनगुनाया करती है,
वो मेरी ग़ज़ल, वो मेरी नज़र,
वो मेरी शरम, वो मेरा सबर !
वो मेरी अदा, वो मेरी सजा,
वो मेरी वफ़ा, वो मेरी रज़ा…!!
Hnji वो मेरी गजल सी…!!₹**!!