ग़ज़ल/ सियासत मेरी फ़ितरत नहीं
ये मुहब्बत है सनम कोई मेरी हरक़त नहीं
मैं तो आईना हूँ सियासत मेरी फ़ितरत नहीं
सिफ़त फ़कत इतना ही जितना ज़ेहन इज़ाज़त दे
इक चेहरे पे कई चेहरें लगा लेना मेरी फ़ितरत नहीं
रंजोगम में भी तू याद आए ख़ुशी में भी तू याद आए
तेरी बेरुख़ी से गर बन जाऊँ हरजाई मेरी फ़ितरत नहीं
इस दुनिया में मुझ सी भी कोई दास्तां ए उल्फ़त नहीं
तू है बेवफ़ा गर मैं भी करूँ बेवफ़ाई मेरी फ़ितरत नहीं
मैं खफ़ा हो सकता हूँ कभी कभी तन्हाइयों में रहकर
तेरी रुसवाइयों में बहकर करूँ रूसवाई मेरी फ़ितरत नहीं
इक दिन जब देखेगा मुझे आईने में आईना तोड़ देगा तू
तू हांसिल नहीं तो किस्मत को दूँ दुहाई मेरी फ़ितरत नहीं
~अजय “अग्यार