ग़ज़ल- …सहारे डूब जाते हैं
ग़ज़ल- सहारे डूब जाते हैं
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धरा ये चांद सूरज और तारे डूब जाते हैं
नज़र के बन्द होते ही नज़ारे डूब जाते हैं
ये नाते और यारी हाय दुनिया के सभी रिश्ते
हमारी साँस के जाते हमारे डूब जाते हैं
यहाँ कुछ भी करो कुछ भी बनाओ पर न जाने क्यूँ
समय की मार पड़ते ही सहारे डूब जाते हैं
सफर ये जिंदगी का एक ऐसा है सफर जैसे
नदी को जीतने वाले किनारे डूब जाते हैं
भला “आकाश” कोई चीज दुनिया में टिकी है क्या
दिखाई दे रहे लेकिन ये सारे डूब जाते हैं
– आकाश महेशपुरी