ग़ज़ल समसामयिक
प्रस्तुत है वर्तमान जीत पर आधारित एक समसामयिक ग़ज़ल
ग़ज़ल /
दुनिया को नई राह बताने का शुक़्रिया ।
हर सिम्त जीत दर्ज़ कराने का शुक़्रिया ।।
दाढ़ी को धन्यवाद है , कुर्ती को धन्यवाद,
औ’ कामयाब ‘गाल बजाने’ का शुक़्रिया ।।
नोटों को बंद करके किया है अज़ब धमाल,
अच्छे दिनों की आस बँधाने का शुक़्रिया ।।
छाती ये फूलती है तुम्हें देखकर मेरी,
दोबारा फिर से लौटके आने का शुक़्रिया ।।
उम्र-ए-दराज़ होके भी तुम नित नए नूतन,
जो हो चुके हैं आज पुराने का शुक़्रिया ।।
क्या चाहती आज ये दुनिया तुम्हें पता ?
अपना अलग मुक़ाम बनाने का शुक़्रिया ।।
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।