ग़ज़ल- वफ़ा के नाम पे अब बेवफाई आम हुई…
??? ग़ज़ल ???
वज़्न – 1212 1122 1212 22
अर्कान – मुफ़ाइलु फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
बह्र – मुज्तस मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ मक़्तूअ
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वफ़ा के नाम पे अब बेवफाई आम हुई।
उड़ी उड़ी सी ख़बर इक़ बड़ा पयाम हुई।।
दुपहरीयों में पसीना बहाया सड़कों पर।
हलाल की थी कमाई वो क्यों हराम हुई।
मिला सके न कभी हाथ उनके हाथों से।
नज़र नज़र से मिली तो दिली सलाम हुई।।
ज़ुदा वतन से हूँ माँ बाप यार सब छूटे।
ये नौकरी भी है या ज़िंदगी गुलाम हुई।।
गँवाता वक़्त रहा चंद सिक्कों की खातिर।
ये उम्र ढलती रही जिंदगी की शाम हुई।।
उड़ान मेरी सफ़र है बुलंदियां छूना।
ये आसमाँ के परे मंजिले मुक़ाम हुई।।
जुबां थी कड़वी मग़र बात सच कही होगी।
तभी तो ‘कल्प’ की हर बात अब कलाम हुई।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’