ग़ज़ल/वो ख़ुद बा ख़ुद क़रीब आएगा
इक रोज़ मुझसे मिलने मेरा नसीब आएगा
मेरी ज़िद है वो ख़ुद बा ख़ुद क़रीब आएगा
अबके मैं नहीं जाऊँगा उससे मिलने खुदाया
वो मेरा अपना होगा तो बा तरक़ीब आएगा
इंतज़ार में उसके ये पलकें झपकने ना दूँगा
वरना आँखों में ख़्वाब कोई अजीब आएगा
मैं लिखता जाऊँगा हर दिन उसी पे अफ़साने
जवाब लिखने को वो भी जुदा अदीब आएगा
~अजय “अग्यार