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13 Jun 2018 · 1 min read

ग़ज़ल- वो गुनाहों का एक साया था

ग़ज़ल- वो गुनाहों का एक साया था
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
वो गुनाहों का एक साया था
दाग दामन पे जो लगाया था
°°°
अक्ल पे जैसे पड़ गया परदा
एक ज़ालिम पे रहम आया था
°°°
भूल पायेगा वो मुझे कैसे
मुझको आँखों में जो बसाया था
°°°
जिसपे कुर्बान कर दिया खुद को
मैं उसी से फरेब खाया था
°°°
दूर रहता है आजकल मुझसे
जो कभी प्यार बन के छाया था
°°°
दिल अगर ये “आकाश” टूटा है
दोष तेरा है आजमाया था

– आकाश महेशपुरी

1 Like · 443 Views
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