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29 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल ..’… .. वाज़दा चाहिए ”

दाल रोटी बस…बकायदा चाहिए
अब नहीं झगड़ना; वायदा चाहिए

रूठ जाएँ कभी भूलकर आप हम
लौट कर ला सके वो सदा चाहिए

साँस के बीच जो साँस आती रहे
देर उतनी तलक तुम जुदा चाहिए

ले लिया है बहुत फ़ायदा या खुदा
हक़ तुम्हारा किस तरह अदा चाहिए

खो गया हूँ तिजारत भरे शहर में
साथ मेरे रहे;.” गुमशुदा चाहिए

झिलमिला जायेगा ये चमन देखना
आपकी बस ज़रा सी अदा चाहिए

खूब समझा किया प्यार की साजिशें
बेमतलब कोई….. वाज़दा चाहिए

चील कौवे चिल्लाना बंटी छोड़ दें
अब नेता से इन्हे कायदा चाहिए
-*-*-*-*-*-*-*–*-*-*–*-*-*
रजिंदर सिंह छाबड़ा

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