ग़ज़ल- लगा के दाग़ मुझे माहताब कर डाला…
लगा के दाग़ मुझे माहताब कर डाला।
कि दाग़ों ने ही मुझे लाज़वाब कर डाला।।
जलो न मुझसे मेरे यार मैं तो छोटा हूँ।
तेरी जलन ने ही तो आफ़ताब कर डाला।।
लिया दिया कभी कुछ भी नही मग़र तूने।
ज़रा सी बात पे सारा हिसाब कर डाला।।
सवाल दाग़ रहे बागी बन मेरे अपने।
तेरे सवालों ने मुझको ज़वाब कर डाला।।
मुज़ाहरीनों को नाकामियां ही मिलती हैं।
मेरे ज़ुनून ने ताबीर ख़्वाब कर डाला।।
उछाल ‘कल्प’ की पगड़ी ख़ुशी से कदमों में।
खुदी ने ख़ुद को यहाँ बेनकाब कर डाला।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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