ग़ज़ल/रूह से रूह मिल रही है
इक जाँ से दुज़ी जाँ हर सू मिल रही है
अब तो ऐसा लगता है रूह से रूह मिल रही हैं
काफी दूरियाँ थी दोनों के दरमियाँ कल तलक
अब तो काँधे से काँधा, बाजू से बाजू मिल रही है
सूरत से ज़ियादा सीरत में उतर गए हैं तेरी
ऐ मेरी जालिमा तेरी गुफ़्तगू से गुफ़्तगू मिल रही हैं
हमें ये एहसास अभी अभी हुआ ज़िन्दगी तोहफ़ा है
वल्लाह तेरी मेरी साँसों की ख़ुशबू से ख़ुशबू मिल रही है
अब जुस्तजू ना रही हमें कोई ना कोई आरज़ू रही
और क्या चाहिए तेरे दीवाने को बड़े सुकूँ से तू मिल रही है
~अजय “अग्यार