ग़ज़ल/रात की किताब
ये पहलू ,इस पहलू की ये रात बड़ी ख़ामोश है
ग़ुमसुम गुमसुम इस की हर बात बड़ी ख़ामोश है
मैं सुन रहा हूँ चुप चुपके, तुम भी सुनों आओ ना
कुछ तो है तिलिस्मी,ये खुराफ़ात बड़ी ख़ामोश है
ये चाँदनी की अठखेलियां, ये जुगनुओं की अंजुमन
इन चहलक़दमी तारों की, ये ज़मात बड़ी ख़ामोश है
इक़ तारा अभी अभी आसमां से टूटकर गिरा है कहीं
उस आसमां से तारा टूटने की आवाज़ बड़ी ख़ामोश है
मैंने तो नींद से सौदा कर लिया पलकों को समझाकर
ये आँखें देख रही हैं नज़ारा ,ये सौगात बड़ी ख़ामोश है
वो पँछी ,पवन ,नदियाँ, चमन औऱ वादियाँ सब सो गए
जमीनों आसमां हैं पासबाँ इनकी बिसात बड़ी ख़ामोश है
ऐ काश मैं भी कोई हवा का झोंका होता तो गुज़र जाता
हर्फ़ दर हर्फ़ हंसीं है ,ये रात की क़िताब बड़ी ख़ामोश है
—-अजय “अग्यार