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18 Nov 2018 · 1 min read

ग़ज़ल- ये नज़रें न होती इशारे न होते…

बह्रे- मुतकारिब मुसम्मन सालिम
अर्कान- फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन

ये नज़रें न होती इशारे न होते।
तो रिश्ते हमारे तुम्हारे न होते।।

जो विस्वास होता, हमें बाजुओं पे।
तो हम भी कभी बेसहारे न होते।।

इरादे रहें नेक वादे अटल हो।
भटकते न मंजिल तो हारे न होते।।

हिदायत बुजुर्गों की अनमोल होती।
जो हम सीख लेते ख़सारे न होते।।

अग़र ‘कल्प’ दिल में न होते इरादे।
जमीं पे फ़लक़ के सितारे न होते।।

✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’

1 Like · 523 Views
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