मेरे शब्द, मेरी कविता, मेरे गजल, मेरी ज़िन्दगी का अभिमान हो तुम।
मंज़िलों से गुमराह भी कर देते हैं कुछ लोग.!
(19) तुझे समझ लूँ राजहंस यदि----
बचपन के वो दिन कितने सुहाने लगते है
मैं अपनी आँख का ऐसा कोई एक ख्वाब हो जाऊँ
रोटी से फूले नहीं, मानव हो या मूस
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
नफरत दिलों की मिटाने, आती है यह होली
prAstya...💐
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
it is not about having a bunch of friends
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
मनमोहन छंद विधान ,उदाहरण एवं विधाएँ
कितना ठंडा है नदी का पानी लेकिन
दिल कि आवाज
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
* निर्माता तुम राष्ट्र के, शिक्षक तुम्हें प्रणाम*【कुंडलिय