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16 Sep 2018 · 1 min read

ग़ज़ल/ये जुगनू

ये जुगनू अँधेरों में भी ख़ुशी का पता देते हैं
चुप चुप ही सही लेक़िन ,मुझें दुआं देते हैं

मैं दरवाज़ा खुला रक्खूँ तो चले आते हैं
मुझें नासाज़ी में भी ,वफ़ा की दवा देते हैं

शायद इन्हें मेरी तन्हाइयों का सबब ख़ूब हैं
जो चमक चमकर, ख़ामोशी में भी ग़ा देते हैं

मैं जशन बनाने लगता हूँ तन्हाइयों में फ़िर
ये मेरे दोस्त हैं ,अपनी रौशनी में मज़ा देते हैं

इनके घरौंदों के लिए मैंनें पेड़ लगा रक्खे हैं
टिमटिमाते हैं रातभर ,पेड़ों को जगमगा देते हैं

ऐ क़ुदरत के कारीगरों इन्हें हर मौसम में भेजों
ये जुगनू फूल हैं उड़ते हुए ,रातों को सजा देते हैं

___अजय “अग्यार

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