ग़ज़ल- ये जरूरी बहुत…
ग़ज़ल- ये जरूरी बहुत…
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ये जरूरी बहुत वादियों के लिए
छोड़ दो फूलों को तितलियों के लिए
पेड़ की ही वजह से हैं सांसे तेरी
यूँ न काटो इसे मस्तियों के लिए
जल को दूषित बनाने से पहले सुनो
सोच लो तुम जरा बाकियों के लिए
बजबजाती नदी और काला धुँआ
छोड़ जाओगे क्या पीढ़ियों के लिए
गर्म “आकाश” यूँ ही जो होगी धरा
आग बन जायेगी प्राणियों के लिए
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 10/03/2020