ग़ज़ल ..’.यादें बसी है आज तलक .”
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गुज़रे हुए लम्हात की ‘उस पाक साल की
यादें बसी है आज तलक ‘काले बाल की
हमने कभी पुकार लिया था अंजाने में
दिल में रही पुकार न निकली बेहाल की
आती है तेरी याद मुझको तेरी क़सम
मर भी गया न जाये आदत ख़याल की
रुख़सार पे हँसी खिलती थी कभी कभी
थी मोतियों से दांत की चमक कमाल की
भूला नहीं है मंजर कोई अभी ”बंटी ”
महफ़िल सजी है दर्दे दिल के मलाल की
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रजिंदर सिंह छाबड़ा