ग़ज़ल- मौत से ही साक्षात्कार करके आया हूँ…
मौत से ही साक्षात्कार करके आया हूँ।
यानी मैं उसे ही दरकिनार करके आया हूँ।।
मौत ही तो इक़ सिला है, मौत सच का आइना।
सच कहूँ मैं सच का ही, शिकार करके आया हूँ।।
जिंदगी क़दम क़दम पे, इम्तहान ले रही।
मुश्किलों के कितने दरिया पार करके आया हूँ।।
मर चुके होते कभी के, बस तेरे ही वास्ते।
रब से चंद साँसें अब उधार करके आया हूँ।।
‘कल्प’ उनकी जिंदगी से, रूबरू हुये नही।
दिलरुबा की सेल्फी से प्यार करके आया हूँ।।
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