ग़ज़ल- मैं खा कर दवाई…
ग़ज़ल- मैं खा कर दवाई…
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मैं’ खा कर दवाई वजन कर रहा हूँ
कि जिन्दा रहूँ ये जतन कर रहा हूँ
मैं’ आगे बढ़ूँ सोच मेरी है’ लेकिन
बड़ी तीव्रता से पतन कर रहा हूँ
है’ जिसने मुझे मौत की ये सजा दी
मैं’ कायर उसी को नमन कर रहा हूँ
ते’री बेवफाई का’ बोलो करूँ क्या
कि खुद को उसी में दफन कर रहा हूँ
सभी कह रहे हैं मुझे एक पागल
यूँ’ गम के सहारे गमन कर रहा हूँ
मैं’ “आकाश” हूँ रोटियाँ माँगता जो
भला किस नियम का हनन कर रहा हूँ
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 21/09/2015