ग़ज़ल :- मेरी औकात
मेरी औकात है क्या, मुझको बताता है कोई…!
आईना ले के मेरे सामने आता है कोई…!!
ख़ुदकुशी जुर्म है सो, जब्त गम पे करता है कोई…!
ज़िन्दगी हँस के भला यूँ भी बिताता है कोई…!!
इश्क़ में हमसे जिगर और लगाता है कोई…!
इश्क़ की हमको सजा और सुनाता है कोई..!!
आना जाना हो, या फिर खोना पाना हो जग में…!
खेल इनसान से सब, ये भी कराता है कोई…!!
जिस कदर हमने गिरह पर है लगाया मिसरा…!
सानी या ऊला, भला ऐसे लगता है कोई…!!
पास आता है हमारे वफ़ा की लहरे बन…!
हम हैं साहिल सो हमें रोज भिगाता है कोई…!!
A. R.Sahil