ग़ज़ल/मेरा धरना वरना है दिल्ली में
मेरा चैन सुकूँ ,दर्द हमदर्द सब ,मेरा जहाँ वहाँ है दिल्ली में
ये मर्ज़-ए-इश्क़-ए-आलम है, मेरी दुआ-दवा है दिल्ली में
मेरी जुस्तजू,मेरी आरजू ,मेरी धड़कन-वड़कन सब उसकी
मेरी नज़र वज़र भी सब उसकी,मेरी हमनवां है दिल्ली में
वो छुपी हुई है इक़ आरिश बनकर जाने कौन से बादल में
मैं ढूढ़ता फ़िरता हूँ दरबदर उसे, वो जानें कहाँ है दिल्ली में
मैं चकोर परिंदा शैदाई बारहाँ तकता हूँ इक़ ही चँदा को
सज़दे में उसके क़तरा क़तरा वो मेरा चँदा वन्दा है दिल्ली में
उसे जंतर मंतर पर ढूढा, उसे इंडिया गेट पर भी ढूढ़ लिया
वो परदेशी बैरन आ भी जाए, मेरा धरना वरना है दिल्ली में
~अजय”अग्यार