ग़ज़ल/मेरा इश्क़ मेरा रब देखता है
ये दिल तेरी बेरुख़ी को कब देखता है
जालिमा ये मेरा इश्क़,तो मेरा रब देखता है
मैं कैसे कैसे तड़पा करता हूँ रोज़ाना
आहें भरता हूँ तन्हाई में ,वो सब देखता है
ये इक़ तरफ़ा की आग में बारहां जलना
वो ख़ुदा मेरी बेचैनियों का ,सबब देखता है
तुझे रत्तीभर की भी ख़बर नहीं,ये मेरा लहू
बढ़ सा जाता है तस्वीर तेरी जब देखता है
तेरी जुस्तजू में पागल है मेरा क़तरा क़तरा
ये तेरी राह हर दिन हर सुबह हर शब देखता है
तुझे दुश्मन भी कहूँ तो कैसे कहूँ तू ही बता
नहीं मानता ये दिल बस तेरा अदब देखता है
ये दिल तेरी बेरुख़ी को कब देखता है
जालिमा मेरा इश्क़, तो मेरा रब देखता है
~अजय “अग्यार