ग़ज़ल- मुहब्बत का खजाना…
ग़ज़ल- मुहब्बत का खजाना…
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मुहब्बत का खजाना चाहता हूँ
नहीं दौलत कमाना चाहता हूँ
कोई अपना मिले या हो पराया
गले सबको लगाना चाहता हूँ
भले कोई करे नफ़रत मगर मैं
मुहब्बत ही लुटाना चाहता हूँ
बुरे लम्हें जो बीते जिंदगी के
उन्हें मैं भूल जाना चाहता हूँ
किसी बच्चे के जैसे मस्तियों में
अभी भी खिलखिलाना चाहता हूँ
नहीं दुखिया मिले कोई कहीं पर
कि ऐसा मैं ज़माना चाहता हूँ
भले “आकाश” आगे है अँधेरा
मगर मैं गुनगुनाना चाहता हूँ
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- ३०/०१/२०२०