ग़ज़ल- मिले जो आईना कोई तो दिखलाने चले आना
ग़ज़ल- मिले जो आईना कोई तो दिखलाने चले आना
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हसीँ तुम गेसुओँ मेँ दिल को उलझाने चले आना
बड़ा टूटा हूँ जानेमन कि बहलाने चले आना
नहीँ हमदर्द है तेरे सिवा कोई जमाने मेँ
अगर गलती करूँ कोई तो समझाने चले आना
मैँ काला हूँ कलूठा हूँ कि झूठा हूँ फरेबी हूँ
मिले जो आइना कोई तो दिखलाने चले आना
बड़ा उपकार है तेरा बचाया है जो मरने से
मरूँ जिस दिन मेरी अर्थी भी सरकाने चले आना
घुटन ‘आकाश’ होती है यहाँ जो तुम नहीँ आते
कभी सपनोँ की बारिश मेँ ही नहलाने चले आना
– आकाश महेशपुरी