ग़ज़ल- मिलेगी हमको, वो हूर-ए-जन्नत, नहीं जहां मे, हो जिसका सानी
बह्रे- मुतक़ारिब मक़बूज़ असलम
वज़्न-फऊलु फेलुन फऊलु फेलुन फऊलु फेलुन फऊलु फेलुन
मिलेगी हमको, वो हूर-ए-जन्नत, नहीं जहां मे, हो जिसका सानी।
कभी तो होगी, ये पूरी मन्नत, बनेगी कोई, तो दिल की रानी।।
वो है तसब्बुर से और बेहतर, नसीब पे मैं, गुमान करता।
दिया ख़ुदा ने, हसीन तोहफ़ा, हुई हसीं है, ये जिंदगानी।।
करूँ जतन क्या, कोई बता दे, मिले वो कैसे, कोई सलाह दे।
रखूँगा रोजा, करूँ इबादत, बनादे जोड़ी, ये रब सुहानी।।
ये मेरा दिल बस, उसे पुकारे, उसी के नज़रों, में है नज़ारे ।
करूँ मुहब्बत, मैं ख़ुद से ज्यादा, मिलेगी मुझको, है मैने ठानी।।
वो मेरा रब है, वो मेरी दौलत, वो मेरी शब है, मेरी सहर है।
मैं नाम क्या दूं, ये कैसा रिश्ता, हे ‘कल्प’ भी ये, अजब कहानी ।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’