ग़ज़ल: ख़ुशबू तेरी बदन में, महकती है आज भी
ख़ुशबू तेरी बदन में, महकती है आज भी।
यादों की बिजलियाँ सी चमकती है आज भी।।
मिलकर तेरा सहमना वो नज़रें झुकाना यूँ।
फूलों लदी हो डाली सी झुकती है आज भी।।
बोसा लिया जो तूने, मेरे सुर्ख़ गाल पर।
गालों पे तेरी लाली चमकती है आज भी।।
वो छुप के तेरा मिलना, साँसो का फूलना।
बाहों में मेरी आके चहकती है आज भी।।
तनहाइयों में मुझको, परेशा हवा करें।
कानों में तेरी चूड़ी, खनकती है आज भी।।
इक़ पल में जी ली जिंदगी डर मौत का नही।
यादों से ‘कल्प’ साँस, महकती है आज भी।।
बहरे:- मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
अरकान:- मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
वज़्न:-221 2121 1221 212
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’