ग़ज़ल- महका है दिल कि गुल खिला गुलशन में जिस तरह
महका है दिल कि गुल खिला गुलशन में जिस तरह।
कोई मयूर नाचता सावन में जिस तरह।।
महका हुआ दयार है अब मेरा चार सू।
खुशबू बिखेर वो गये आंगन में जिस तरह।।
दौलत ज़हान की नही देती ख़ुशी हमे।
खुशियाँ मिलीं खिलौनों से बचपन में जिस तरह।।
भारत बना महान, सभी मजहबों से मिल।
तिनके पिरोती चिड़िया,नशेमन में जिस तरह।।
मुमताज़ ताज़ वाली नहीं ‘कल्प’ चाहिए।
अरमान दफ़्न शाह के मदफ़न में जिस तरह।।
✍??अरविंद राजपूत ‘कल्प’?✍?
221 2121 1221 212
दयार:- आँगन,भूखण्ड, चार सू:- चारों दिशाओं में
आब-ए-हयात:- अमृत, नशेमन:-घोसले
मदफ़न- मक़बरा, समाधि