ग़ज़ल/बे वज़ह मुस्कराओ
मुहब्बत है तो मुहब्बत में शर्माओ इतना तो करो
कसमें ख़ाकर कसमें निभाओ इतना तो करो
इश्क़ ये सौदा नहीं कोई ये तो आग का दरिया है
तुम डूब सको तो डूब जाओ इतना तो करो
किस तरफ़ कितनी है आग ज़रा आज़माकर देखों
बरसती बारिश में आग लगाओ इतना तो करो
कभी जहाँ की ना सोचो ,इश्क़ में ख़लल पड़ता है
चाँद-तारों में नई दुनियाँ बसाओ इतना तो करो
तुम्हें हक़ है इस ज़िन्दगी में ,बे वज़ह मुस्करानें का
ये तुम्हारी ज़िन्दगी है, बे वज़ह मुस्कराओ इतना तो करो
किसी भीगते परिन्दे का दर्द पागल हवा कहाँ समझती है
ठिठुरती हवा में, बेखौफ़ पर फ़ैलाओ इतना तो करो
__अजय “अग्यार