ग़ज़ल:- बेरुखी सी क्यूं है इतनी तेरे अल्फ़ाज़ो मे।
दोस्तो,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,,!!!
ग़ज़ल
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बेरुखी सी क्यूं है इतनी तेरे अल्फ़ाज़ों मे,
टूट कर बिखर गये ख़्वाब जैसे रिवाजों मे।
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दरिया की तरहा समदंर मे गिर के तो देख,
डूबने का आऐ न ख़्याल कभी जहाज़ो मे।
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है मुश्किल डगर सच की,मगर चलते रहो
छोड़ो क्या रखा फ़जूल तख्त-ओ-ताजो मे।
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तराशते रहो तुम खुद को, कुछ इस तरहा
कि रोशन हो चराग,मिटे अंधेरा समाजो मे।
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ये वक्त आज है तुम्हारा जो कल नही होगा,
रख जरा सी नर्मी अपने तल्ख़ मिज़ाजो मे।
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मुफलिसी का मारा हूं तो क्या हुआ “जैदि”
सरजमीं की गोंद मे मै भी हूं पला नाज़ो मे।
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शायर:-“जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”