ग़ज़ल:- बुझे बुझे से चेहरे, बुझे से ख़्याल है
ग़ज़ल
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बुझे-बुझे से चेहरे, बुझे हुऐ से ख़्याल है
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बुझे बुझे से चेहरे, बुझे हुऐ से ख़्याल है,
कुछ न बदला, बदला फ़कत ये साल है।
थे जहां तआजुब है वही पे हम आज है,
दरिद्रता,व्याभिचार सबसे बड़े सवाल है।
गांव,ढाणी, शहर सब सड़को पे आया,
बिन मांगे जो मिल रहा उसी पे बवाल है।
हम बड़ा गली संकरी, सोचते सब यहां,
बात अंदर की करे, कर्ज से डूबे बाल है।
उसकी टोपी इसके सिर, रखते है यहां,
दुनिया के मंच पे ये कला बड़ी कमाल है।
भूख से बिलखती जिह्वा सब जाने ‘जैदि’,
मुफलिसी का हर कंधा खुद से बेहाल है।
मायने :-
फ़कत:- केवल
मुफलिसी:-गरीबी
जिह्वा:-जीभ
शायर :-“जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”