ग़ज़ल- प्यार के दरिया में रहकर प्यार की ही प्यास थी
दूरियां थी दरमियां लेकिन मिलन की आस थी।
प्यार के दरिया में रहकर प्यार की ही प्यास थी।।
फ़ासले हों दरमियाँ, कोशिश सभी की ही रही।
लाख बंदिश थी ज़माने की मग़र वो पास थी।।
था करिश्मा आप में, जादूगरी थी नाम मे।
नाम सुन चलने लगीं, मुर्दे में भी अन्फ़ास थी।।
था फ़क़ीरी में शहंशाह, दौलते ईमान से।
इश्क़ थी जागीर मेरी, इक़ तू ही अल्मास थी।।
शर्म से नारी बनेगी, कब तलक पत्थर सिला।
राम आयेंगे दुबारा ‘कल्प’ को पुर-आस है।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बहरे- रमल मुसम्मन महजूफ़
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